जर्जर आवास में राह रहे बिरहोर,खुले में शौच जाने को मजबूर
करमा पंचायत के बिरहोर टोली के अजजा परिवारों का हाल
2005 में मिला आवास दो से तीन साल में ही हो गया जर्जर
आकाश सिंह
मयूरहंड : प्रखंड के करमा पंचायत के बिरहोर टोला में निवास कर रहे लगभग चालीस आदिम जनजाति(बिरहोर)परिवार वर्षो गुजर जाने के बाद भी उनकी तकदीर नही बदल पाई है। आज भी मुलभुत सुविधाओ से महरूम है। झारखंड राज्य गठन होने बाद से कई सरकारे आयी और गयी। कई मुख्यमंत्री आए और गए। लेकिन बिरहोर परिवार के जीवन मे सुधार नही ला सके। सरकार से लेकर जिला प्रशासन तक आदिम जनजाति परिवारों की सूरत बदलने को लेकर कई बार घोषणाएं हुई। लेकिन बिरहोरों की तकदीर नही बदल सके। बिरहोरों का मुहल्ला उनकी जमीनी हकीकत आज भी बयां कर रही है। बिरहोर टोला में निवास करने वाले अधिकांश बिरहोर परिवारों के पास सर छुपाने के लिए छत तक उपलब्ध नहीं है। बिरहोर परिवार किसी प्रकार जर्जर आवास में अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर है। देश के प्रधानमंत्री द्वारा असहाय व गरीबों को प्रधानमंत्री आवास मुहैया कराने के बाद भी बिरहोर परिवार इस योजना से वंचित रह गए। जानकारी के अनुसार वर्ष 2005 में बिरसा आवास योजना के तहत कल्याण विभाग द्वारा बिरहोर परिवारों के लिए आवास का निर्माण करवाया गया था। जो महज एक वर्ष में हीं जर्जर अवस्था में चला गया। कई मकानों में छत तक नहीं बचा फिर भी गरीबी व बेबसी के मारे कई बिरहोर परिवार को जोखिम में डालकर परिवार सहित बिना छत के मकान में रहने को विवश हैं। वही बिरहोर टोला में अभी तक स्वच्छ भारत मिशन अभियान भी नही पहूंच पाया। पूरे टोले में गंदगी का अंबार लगा हुआ है। बिरहोर परिवारों के पास शौचालय तक नही है। बिरहोर परिवार आज भी खुले में शौच जाने को विवश हैं। ग्रामीणों ने बताया को पीएचडी विभाग द्वारा अधिकृत स्वंय सेवी संस्थाओं ने लगभग दो वर्षों से आधा अधुरा शौचालय निर्माण कराया गया था। जो किसी काम नहीं रही रहा। बिरहोर टोला में जो कुछ भी विकास के लिए योजना का क्रियान्वयन करवाया गया वो भी बिचौलियों के भेंट चढ़ गया।लगभग चार वर्ष पूर्व लाखों की लागत से शुद्ध पेयजल आपूर्ति को लेकर सोलर संचालित जलमीनार अधिष्ठापित किया गया था। जो महज छः माह ही चल पाया। जबकि क्रियान्वित एजेंसी को पांच साल तक रखरखाव को लेकर पैसा निर्गत किया जाता है। इसके बावजूद खराब पड़ा सोलर संचालित जलमीनार बनाने की जहमत ना तो पीएचडी विभाग उठा रही है और ना हीं एजेंसी के संवेदक। बताते चले कि आदिम जनजाति परिवारों को उत्थान एक सपना जैसा हो गया है। बिरहोर परिवार भी किसी मसीहे के इंतजार में पलके बिछाए बैठे है।