5 जून पर्यावरण दिवस पर विशेष
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पर्यावरण और हथियार
----श्रीराम रॉय,शिक्षक,अमझर, मयूरहण्ड
पूरी दुनिया पर्यावरण संरक्षण पर जोर दे रही है । हर जगह "पर्यावरण बचाओ - पर्यावरण बचाओ" का नारा बुलंद है ।
यह पर्यावरण शब्द ऐसे तो बहुत कठिन है ; परंतु समझ आ जाने के बाद यह बहुत ही सरल हो जाता है। "पर" का अर्थ "दूसरा" होता है , और "आवरण" का अर्थ "स्तर" होता है। अर्थात हमारे चारों ओर एक विशेष स्तर भी पाया जाता है।यह स्तर बिभिन्न घटकों से निर्मित रहता है।
दूसरे शब्दों में हम जीव हैं । हम मानव हैं। हम चारों ओर से एक विशेष चादर से लिपटे हुए हैं । इस विशेष चादर के नहीं रहने पर हमारा अस्तित्व नहीं रहेगा।
यह चादर मुख्य रूप से दो प्रकार के घटकों से बना हुआ है । इसका पहला घटक निर्जीव और दूसरा घटक सजीव कहलाता है । पर्यावरण के इन दोनों घटकों के बीच निरंतर पारस्परिक क्रियायें होती रहती हैं।
हमारे बीच जो निर्जीव वस्तुएं पाई जाती हैं ,इनमें मुख्य रूप से हवा , जल एवं मिट्टी है । पृथ्वी का कोई जीव बिना इन घटको के जीवित नहीं रह सकता है । हवा, जल और पृथ्वी को हम क्रमशः वायुमंडल , जलमंडल और स्थलमंडल में रख सकते हैं। वायुमंडल में मुख्य रूप से नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड गैसें पाई जाती हैं। यहां नाइट्रोजन 78% , ऑक्सीजन 21% और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 0.03 % के लगभग है।
जीवमंडल का कोई भी जीव इन्हीं गैसों पर आश्रित है ।
यहां यह स्पष्ट है कि जीव दो प्रकार के होते हैं जिन्हें "पादप" और "जंतु" कहा जाता है । पौधे जहां कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा को ग्रहण करते हैं ; वही ऑक्सीजन को वायुमंडल में मुक्त करते हैं । इस ऑक्सीजन को हम जंतु ग्रहण करते हैं ।
आज अंधाधुंध शहरीकरण के कारण विभिन्न प्रकार की भौतिक मांगे बढ़ते जा रही है । इन मांगों की पूर्ति के लिए भारी मात्रा में कल कारखाने स्थापित किए जा रहे हैं । ये कल-कारखाने जलमंडल, वायुमंडल ही नहीं स्थलमंडल को भी प्रभावित करते हैं । एक छोटे से ईंट के भट्टे के कारण जहां भारी मात्रा में उपजाऊ मिट्टी की ख़ुदाई की जाती है , वहीं भारी मात्रा में निरंतर धुंआ उगलती चिमनी को देख सकते हैं । इस अंधे दौर में आज बड़े -बड़े शहरों के चारों ओर स्थापित कल कारखाने जहां जन जीवन के लिए जल की उपलब्धता को बाधित कर रहे हैं ; वहीं वायु भी प्रदूषित कर रहे हैं । इसके कारण पृथ्वी का धरातल तेजी से गर्म होते जा रहा है । यहां ध्यान देने वाली बात है कि कार्बन डाइऑक्साइड एक भारी गैस है । आज धरातल पर इसकी मात्रा बढ़ती जा रही है । सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणों को यह धरातल से टकराकर वापस नहीं जाने देती है। जिसके कारण पृथ्वी के गर्म होने से ग्लेशियर पिघलने लगे हैं। ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र के जल स्तर बढ़ते जा रहे हैं । समुद्री जलस्तर बढ़ने से समुद्र के किनारे बसे महानगरों के डूबने का खतरा बढ़ता जा रहा है ।
आज कोरोना काल में स्पष्ट है कि गांव की अपेक्षा शहर की आबादी भारी मात्रा में कोविड-19 का शिकार हो रही। इससे यह स्पष्ट होता है कि महानगरों का पर्यावरण ग्रामीण पर्यावरण से अधिक दूषित है । क्योंकि कारखानों के अलावा मोटर वाहनों , जनरेटर ,एसी ,फ्रिज इत्यादि का भंडार शहरों में है।जिनसे भारी मात्रा में cfc जैसी हानिकारक गैसें मुक्त होते रहती हैं। ये गैसें ऑक्सिजन की उपलब्धता को भी बाधित करती हैं।
इस कोरोना महामारी में पूरी दुनिया ऑक्सीजन के लिए तरस रही है ।ऐसी स्थिति से बचने के लिए हमें ठोस कदम उठाने होंगे । वायु ,जल और पृथ्वी से निर्मित अपने पर्यावरण को सुरक्षित रखने के कारगर उपाय अपनाने होंगे । दुनिया को ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों को अपनाने के साथ- साथ अस्त्र शस्त्र से परहेज करने होंगे।पृथ्वी के बढ़ते ताप के लिए जितना जिम्मेदार वन उन्मूलन है, उससे कहीं कम परमाणु विस्फोट, मिशाइलों के परीक्षण भी नही हैं। अतः हथियारों के होड़ पर भी अंकुश आवश्यक है चाहे यह जैविक हथियार के रूप में कोरोना ही क्यों न हो।